Saturday 16 September 2017


जिसको करना है इक दिन वो कर जाता है

जिसको करना है इक दिन वो कर जाता है
वक़्त से आगे हद से गुज़र जाता है
ना दिखती उसे राह की गुत्थियाँ
और ना मिलती उसे शब्द से सुर्ख़ियाँ

वो तो पागल है अब बस हवा खाता है
साँस में आस हर पल जगा जाता है
और जो सोचा था.. तो आगे बढ़ जाता है
जिसको करना है इक दिन वो कर जाता है

लोग जुड़ते हैं  ख़ुद कारवाँ के लिए
उसमें पाते है अपनी परछाइयाँ
परछाइयों में घेरा बन जाता है
रास्ता ख़ुद - मार्ग दिखलाता है

शब्द बनते हैं ख़ुद उस खुदा के लिए
उन शब्दों में होती है चिंगारियाँ
जब मन का अँधेरा घना छाता है
तब ये चिंगारियाँ लौ जला जाता है

मैं तो आगे बढ़ा था अकेला बहुत
राह में जुड़ गया कारवाँ अब बहुत
बढ़ चला हूँ तो अब बस चला जाता है
मेरी बिगड़ी तो मौला बना जाता है

जिसको करना है इक दिन वो कर जाता है
यतिश १४/६/२०१७
रेत और बूँदें

जब  तुम अधनींद में
अपनी उंगली मेरी
उंगली से लिपटाती हो
तो मैं बुत बन जाता हूँ

मैं रेत के बुत की तरह
और तुम जैसे अमृत फुहार
बूँदें पड़ते ही पिघल जाता हूँ
आकार को मिल जाता है विस्तार

रेत पे जब बूँदें पड़ती हैं तो
 निराकार से आकार होने
की प्रक्रिया भी शुरू होती है
पैकर में जान और अनुभूति की भी...

अनुभूति प्रेरित करती है प्रेम की ओर
और प्रेम प्रेरित करता है हरने की ओर
श्याम से उसकी बाँसुरी और मीरा से भजन
बुद्ध से सच्चाई और शंकर से मलंग

पर इतनी ऊर्जा मैं संभालूँगा कैसे ?
मुझे ज़रूरत होगी तुम्हारे आलिंगन की
जहाँ धैर्यता संयम और सानिध्य मिलेंगे
शांति से तुम्हारी धड़कनों को गिनता रहूँगा

तुम्हारी धड़कनों में दुरूद सी ताक़त है
और तुम्हारा धवल चाँद सा चेहरा
असीम चाँदनी सी शीतलता देता हैं
जिसे अपलक निहारते निहारते
मैं शून्य को छूने निकल पड़ता हूँ

यही चक्र मुझे बीते कई सालों से
रोज़ एक नए बंधन से मुक्त किये जा रहा है
यू ही रोज़ थोड़ा थोड़ा भारमुक्त हो रहा हूँ मैं
और उड़ रहा हूँ हौले हौले शून्य की ओर

यतिश ३०/७/२०१७.